Traditional Hingot war :- इंदौर से लगभग 55 किलोमीटर दूर गौतमपुरा नगर में भाई दूज के दिन तुर्रा दल और कलंगी दल के बीच पारंपरिक Traditional Hingot war हिंगोट युद्ध खेला गया।
प्रत्येक वर्ष यह युद्ध दीपावली के अगले दिन यानी पड़वा पर खेला जाता है। परंतु इस बार पड़वा के दिन सूर्य ग्रहण होने से यह युद्ध भाई दूज के दिन खेला गया। पारंपरिक रूप से खेले जाने वाले इस युद्ध में प्रयोग होने वाला हथियार हिंगोट है।
यह चम्बल नदी के आस पास के इलाकों में मिलता है । निम्बू के आकार का यह फल नारियल की तरह बाहर से सख्त ओर अंदर से गूदे वाला होता है । योद्धा दीपावली के कई महीनों पहले इसे सुखाकर इसमें बारुद भरने के लिए तैयार कर लेते हैं।
युद्ध के दौरान जब इसमें आग लगाई जाती है तो यह रॉकेट की तरह आकाश में उड़ान भरता हुआ सामने वाले दल के योद्धा की ओर जाता है। इस युद्ध में किसी दल की हार-जीत नहीं होती किन्तु अनेक लोग इस खेल में गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं।
बुधवार को भी सुबह से ही आस पास के गाँवों के साथ ही दूर दूर से आये सैलानियों का युद्ध मैदान में जमावड़ा लगने लगा। शाम को योद्धाओं ने ढोल ढमाकों के साथ अति प्राचीन श्री देवनारायण मंदिर पहुँचकर आशीर्वाद लिया वहां से वें युद्ध मैदान पहुंचे।
युद्ध शुरू होने से पहले दोनों दल के योद्धा आपस में गले मिले और फिर आमने-सामने हो गये। दोनों तरफ से योद्धाओं ने एक दूसरे पर जोरदार आग के गोले बरसाएं। इस युद्ध में दोनों ही दलों के योद्धा घायल हो गए। जिन्हें एम्बुलेंस द्वारा उपचार के लिए अस्पताल पहुंचाया गया।
वर्षों से चली आ रही इस परम्परा में न तो कोई जीतता है और न ही किसी की हार होती है। यहां पहुंचने वाले प्रतिभागी भी हार-जीत के लिए नहीं बल्कि परम्परा को निभाने के लिए हिंगोट युद्ध खेलते हैं।