खगोलीय घटना, मध्य प्रदेश में लोगों ने जलते पिंडों को आसमान से गिरते देखा

Indore city इंदौर शहर और मालवा-निमाड़ अंचल के क्षेत्रों में शनिवार को लोग अनोखी खगोलीय घटना के प्रत्यक्षदर्शी बने। शाम करीब साढ़े सात से पौने आठ बजे के बीच आसमान में तेज रोशनी के साथ गिरते पिंडों ने लोगों का ध्यान खींचा। लोग इसे उल्का पिंड के गिरने की घटना के रूप में ले रहे थे और वीडियो बनाकर इंटरनेट मीडिया पर शेयर भी कर रहे थे।

Indore city इंदौर के बिजलपुर, खंडवा व खरगोन में नजारा साफ देखा गया। आकाश में आतिशबाजी की तरह नजर आए इन चमकीले पिंडों के उल्का या यूएफओ के साथ किसी उपग्रह या विमान के टुकड़े होने की बात भी कही जा रही है। हालांकि, अब तक किसी भी सरकारी एजेंसी ने इनके गिरने की जगह और ये क्या थे, इसकी पुष्टि नहीं की है।

चिल्ड्रेन साइंस सेंटर इंदौर के समन्वयक राजेंद्र सिंह ने बताया कि शनिवार शाम के वक्त उज्जैन से इंदौर की ओर जा रहे थे। लेकिन बीच में उन्होंने उल्का पिंड जैसे दिखने वाले पिंडों को देखा। खगोलशास्त्रियों से बात करने पर पता लगा कि कसरावद के पास बालसमुंद गांव में उल्का पिंड जैसे पिंड के टुकड़े गिरने की जानकारी सामने आई।

उधर, खरगोन कलेक्टर अनुग्रह पी और खंडवा कलेक्टर अनूप कुमार सिंह ने इस तरह की घटना से इन्कार किया है। आकाश में उल्का पात होता रहता है। कई बार कोई पिंड बड़ा रहता है तो वह नीचे आता है। अधिकांश तो ऊपर ही जल जाते हैं। शनिवार को जो देखा गया है, वह उल्का पिंड ही है।

यह उल्का पिंड के, पहले भी कई मामले आ चुके हैं

मौसम विभाग के भोपाल केंद्र में रडार इंचार्ज वेदप्रकाश के अनुसार, यह घटना उल्का पिंड का गिरना ही है। पिछले सप्ताह राजस्थान में ऐसी तीन घटनाएं दर्ज हुई हैं। यह पिंड पूर्व से पश्चिम की ओर आता देखा गया है, जिसके इंदौर और खंडवा के बीच कहीं गिरने का अनुमान है।

मौसम विभाग के रडार पर एक समय में कई गतिविधियां दिखाई देती हैं, ऐसे में रडार पर इसे अलग से दर्ज नहीं किया गया है। इधर, मौसम केंद्र भोपाल के उप निदेशक वेद प्रकाश सिंह ने इस रोशनी के उल्का पिंड होने की बात कही है। सैटेलाइट के अनुसार इसके खंडवा-इंदौर के बीच कहीं गिरने की चर्चा है।

रीजनल साइंस सेंटर भोपाल में काम कर चुके विट्ठल बाबुराव रायगांवकर उसे बात करने पर पता चला की, 2005 के आसपास रूस का सेटेलाइट जब गिरा था, तब भी बिल्कुल ऐसा ही दृश्य दिखा था। दरअसल, कई बार सैटेलाइट किसी खराबी की वजह से बंद हो जाते हैं और अपना कंट्रोल खो देते हैं।

ऐसे में वे पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण की वजह से इस तरह आते हैं। ये 70 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करते हैं, जिससे वातावरण में मौजूद कणों में घर्षण होता है और तापमान बढ़ता जाता है। इसके बाद वह आग के गोले की तरह दिखाई देने लगते हैं, जिसे लोग उल्का पिंड समझ लेते हैं।