Himachal Old Diwali:- पूरे देश में दिवाली की धूम है लोग खुसी से दिवाली की तैयारी कर रहे है। सब लोग इस त्यौहार को मना रहे हैं। हालांकि एक Himachal Old Diwali ऐसा भी इलाका है जहां दिवाली अभी नहीं बल्कि एक महीने बाद मनाई जाएगी। हिमाचल प्रदेश के कुछ इलाकों में दिवाली का जश्न अभी बाकी है। सिरमौर के गिरिपार इलाके, शिमला के कुछ गांवों और कुल्लू के निरमंड में बूढ़ी दिवाली मनाई जाती है।
इसी से जुड़ा निरमंड का ऐतिहासिक बूढ़ी दिवाली मेला भी काफी मशहूर है। हालांकि कोरोना वायरस की वजह से 2 साल के बाद इस दिवाली को मान्य जायेगा। जिस को लेकर काफी खुसी का माहौल देखा जरा है। और लोगो में उत्सा बहुत है।
एक महीने बाद क्यों मनाई जाती है दिवाली ?
जिन इलाकों में बूढ़ी दिवाली का त्यौहार मनाया जाता है, वहां सर्दियों में बेशुमार बर्फ पड़ती है और तापमान माइनस में चला जाता है। ऐसे में वहां बेहद मुश्किल हालातों में लोग रहते हैं और बर्फबारी के बाद आज भी उनका संपर्क बाकी दुनिया से काफी हद तक सीमित हो जाता है। माना जाता है कि इन जगहों पर भगवान राम के अयोध्या पहुंचने की खबर एक महीना देरी से मिली थी।
पहाड़ी लोगों ने जब यह सुखद समाचार सुना तो उन्होंने देवदार और चीड़ की लकड़ियों की मशालें जलाकर रोशनी की और खूब नाच-गाना करके अपनी खुशी जाहिर की। तभी से यहां बूढ़ी दिवाली मनाने की परंपरा चल पड़ी। लोग आज भी दिवाली की अगली अमावस्या को इस त्योहार को मनाते हैं। गिरिपार में बूढ़ी दिवाली को ‘मशराली’ के नाम से मनाया जाता है।
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लोग परोकड़िया गीत, विरह गीत भयूरी, रासा, नाटियां, स्वांग के साथ हुड़क नृत्य करके जश्न मनाते हैं। कुछ गांवों में बूढ़ी दिवाली के त्योहार पर बढ़ेचू नाच करने की परंपरा भी है। कई जगहों पर आधी रात को बुड़ियात नृत्य भी किया जाता है। लोग एक-दूसरे को सूखे व्यंजन मूड़ा, चिड़वा, शाकुली, अखरोट बांटकर बधाई देते हैं। यहां शिरगुल देवता की गाथा भी गाई जाती है। पुरेटुआ का गीत गाना जरूरी समझा जाता है। हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के कुछ गांवों में तो इस त्योहार को पूरे एक हफ्ते तक मनाया जाता है।