High Court मध्यप्रदेश के सागर जिले के बंडा तहसील में 2019 में 11 वर्षीय बच्ची से गैंगरेप और फिर उसकी हत्या के मामले में जिला अदालत ने दो भाइयों रामप्रसाद अहिरवार और बंसीलाल अहिरवार को फांसी की सजा सुनाई थी। इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई, जिसके बाद शुक्रवार को सुनवाई में अदालत ने बंसीलाल को बरी कर दिया, जबकि रामप्रसाद की फांसी की सजा को 25 साल की कैद में बदल दिया।
High Court हाईकोर्ट ने पाया कि रामप्रसाद ने अपने अपराध को कबूल कर लिया था। इसे देखते हुए अदालत ने उसकी फांसी की सजा को बदलने का फैसला किया। जस्टिस विवेक अग्रवाल और जस्टिस देव नारायण मिश्रा की पीठ ने सागर के बंडा में हुई इस जघन्य घटना के मामले में जिला अदालत का निर्णय पलटते हुए कहा कि यह ‘विरलतम मामलों’ की श्रेणी में नहीं आता, जिसमें केवल मृत्युदंड ही उचित हो।
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सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि का प्रभाव
High Court हाईकोर्ट ने यह भी माना कि रामप्रसाद अहिरवार पेशेवर अपराधी नहीं था और यह उसका पहला अपराध था। मामले के दौरान आरोपी के वकील मनीष दत्त ने यह दलील दी कि वह एक साधारण मजदूर परिवार से आता है और इससे पहले कभी किसी आपराधिक मामले में संलिप्त नहीं रहा। इसी आधार पर अदालत ने उसकी सजा को घटाते हुए कहा कि उसे समाज में सुधार का मौका मिलना चाहिए।
अदालत ने यह कहा: “आरोपी की सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि, शिक्षा का स्तर और उसका अपराध स्वीकार करना, यह सभी तथ्य उसकी सजा में छूट के लिए महत्वपूर्ण आधार बने। मृत्युदंड के स्थान पर उसे अपने अपराध पर पश्चाताप का अवसर मिलना चाहिए, ताकि वह एक बेहतर नागरिक बन सके।”
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घटना का विवरण
यह दर्दनाक घटना 13 मार्च 2019 की है, जब सागर जिले के बंडा में 11 वर्षीय बच्ची को बहला-फुसलाकर ले जाया गया था। अगले दिन बच्ची का सिर कटा शव मिला, जिसके बाद पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज कर जांच शुरू की। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में बच्ची के साथ गैंगरेप की पुष्टि हुई, जिसके बाद आरोपियों पर धारा 376, 302 और पॉक्सो एक्ट के तहत मामले दर्ज किए गए। जांच में सामने आया कि रामप्रसाद और बंसीलाल ने बारी-बारी से बच्ची के साथ दुष्कर्म किया और फिर हंसिया से उसका गला काट दिया।
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जिला अदालत का फैसला और हाईकोर्ट का रुख
मार्च 2019 में बंडा के अपर सत्र न्यायाधीश ने रामप्रसाद और बंसीलाल दोनों को फांसी की सजा सुनाई थी। लेकिन हाईकोर्ट ने यह फैसला पलटते हुए कहा कि इस मामले में मृत्युदंड आवश्यक नहीं था। इसके अलावा, आरोपी चाची सुशीला अहिरवार को पहले ही बरी कर दिया गया था और नाबालिग भाइयों के मामले किशोर न्यायालय में विचाराधीन हैं।
High Court हाईकोर्ट का निष्कर्ष: “रामप्रसाद की सजा बदलने का फैसला सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि, अपराध की स्थिति, आरोपी की आयु और उसके अपराध स्वीकार करने पर आधारित था। यह न्याय सुनिश्चित करने के साथ ही मानवीय पहलू को भी महत्व देता है।” इस प्रकार, हाईकोर्ट ने सजा में बदलाव करते हुए आरोपी को 25 साल की कैद का आदेश दिया है, जबकि बंसीलाल को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया।