Gudi Padwa Indore :- किसी समय मराठा साम्राज्य का सूबा और बाद में होलकर स्टेट होने से इंदौर में गुड़ी पड़वा Gudi Padwa का विशेष महत्व है। इस दिन होलकर राजपरिवार द्वारा की जाने वाली पूजा को देखने लोग दूर-दूर से आते थे। प्रतिभाओं का सम्मान भी किया जाता था। होलकर शासनकाल में गुड़ी पड़वा Gudi Padwa पर सूर्योदय से सूर्यास्त तक आयोजन होते थे।
राजपरिवार द्वारा तीन जगह गुड़ी बांधी जाती थी। हाथी-घोड़ों को सोने-चांदी के आभूषणों से सजाकर पूजा की जाती थी। वक्त के साथ काफी बदलाव आया हो लेकिन आज भी मल्हारी मार्तंड मंदिर में राजकीय परंपरा निभाई जाती है। होलकर राजपरिवार गुड़ी के लिए साड़ी पहुंचाता है और पुजारी सूर्योदय के समय पूजन करते हैं।
मंदिर के पुजारी पं. लीलाधर वारकर बताते हैं कि आज भी गुड़ी पड़वा की पूजा का खर्च राजपरिवार द्वारा निर्मित खासगी ट्रस्ट वहन करता है। हालांकि अब चांदी के बजाय लकड़ी के दंड पर गुड़ी बांधी जाती है लेकिन आज भी उस पर चांदी का कलश लगाया जाता है। गुड़ी के साथ राजचिन्ह, राजदंड, कुलदेवता, ध्वज, गादी और पंचांग पूजन किया जाता है।
गुलाब जल से धोते थे राजवाड़ा को
इतिहासकार डा. गणेश मतकर के संग्रह से उनके बेटे सचिन मतकर ने बताया कि राजवंश द्वारा इस दिन मल्हारी मार्तंड मंदिर, दौलत की गादी और खासगी की गादी पर गुड़ी बांधी जाती थी। राजपरिवार के निवास और कार्यालयों पर नवध्वज फहराए जाते थे। गुड़ी पूजन के पहले राजवाड़ा और मंदिर को गुलाब जल से धोया जाता था।
चांदी की 12 फीट लंबी छड़ी पर जरीदार साड़ी और चांदी का कलश लगाकर गुड़ी बांधी जाती थी। महाराज और रानी राजोपाध्याय के साथ पूजन करते थे। गौरीशंकर, मल्हारी मार्तंड, खासगी की गादी, दौलत की गादी, राजचिन्ह, राजदंड, जरी पटका व राजध्वज का पूजन किया जाता था।
नौ देवियों के रूप में घोड़ियों और हाथियों की होती थी पूजा – सबसे खास बात यह थी कि इस दिन नौ देवियों के रूप में नौ घोड़ियों और दो हाथियों का भी पूजन होता था। इन हाथियों और घोड़ियों को सोने-चांदी के आभूषण व रेशमी वस्त्रों से सजाकर राजवाड़ा पर दशहरा कचहरी के पास लाया जाता था और उन्हें दक्षिण द्वार से बाहर निकाला जाता था।
सबसे आगे एक राजा का और एक फौज का हाथी, उसके पीछे नौ घोड़ियां, मल्हारी मार्तंड की पालकी, शंकरजी की पालकी, होलकर परिवार की कन्हैया तोप और राजचिन्ह को जुलूस के रूप में निकाला जाता जो राजवाड़ा की प्रदक्षिणा कर मुख्य दरवाजे पर आते थे। वहां राजा सोने की चवरी से उनकी पूजा करते थे। इसके बाद 21 सैनिक गुड़ी को सलामी देते थे।
लगता था आश्रितों का दरबार
पूजन के बाद लगने वाले दरबार में राज्य की प्रतिभाओं का सम्मान किया जाता था। उन्हें राजकीय वस्त्र और उपहार दिए जाते थे। इसे आश्रितों का दरबार कहा जाता था। इसके साथ ही चैत्र मास के पूजन की शुरुआत होती थी। इसमें गणगौर पूजन, रामनवमी, चैत्र के हर शुक्रवार को हल्दी-कुमकुम और सत्तू अमावस्या की पूजा होती थी।